Saturday 12 September 2020

Hindi story-भाग्य का खेल (शंका,संदेह)

 भाग्य का खेल

 


    बहुत वर्षों पहले इसकी सिसली में राजा लिओन्टेस राज्य करता था। इटली के पास सिसली एक बड़ा टापू है। राजा लिओन्टेस के राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी। राजा लिओन्टेस की बहुत ही सुंदर रानी थी जिसका नाम हरमियोंन था। रानी इतनी सुंदर थी कि उसकी सुंदरता की प्रसिद्धि दूर-दूर तक थी।

  सिसली में भूमध्य सागर के दूसरे किनारे पर अफ्रीका का एक राज्य बोहेमिया था। बोहेमिया का राजा पोलीजीन था ,जो बहुत शक्तिशाली था। सिसली और बोहेमिया के राजाओं में गहरी मित्रता थी। दोनों के राज्यों में आपस में व्यापार भी होता था तथा एक दूसरे के प्रति दोनों राजा सदभाव रखते थे।

  एक बार बोहेमिया के राजा पोलीजीन अपने मित्र लिओन्टेस के पास आए। बहुत राजकीय सम्मान के साथ दोनों मित्र मिले।  राजा लिओन्टेस ने अपने मित्र की बहुत आवभगत की तथा अपने महल के हिस्से में उसको पूर्ण सम्मान के साथ ठहराया। रानी हरमियोंन ने भी राजा का बहुत स्वागत किया तथा हर प्रकार से उसके आराम का इंतजाम किया जिससे शाही मेहमान को असुविधा ना हो।

  इस प्रकार राजा पोलीजीन अपने मित्र के पास लगभग एक  माह तक वहीं रुका। अंत में एक  दिन मेहमान ने जाने की इच्छा प्रकट की।

  राजा लिओन्टेस ने अपने मित्र से कहा कि मित्र! तुम्हारे साथ हमारा समय ऐसे निकल गया कि हमें मालूम ही नहीं हुआ। थोड़े दिन और यहीं रुक जाओ। तुम्हारे राज्य के समाचार तो तुम्हारे पास आते ही रहते हैं।

  "परंतु मित्र अब हमें यहां इतने दिन हो गए हैं तुम्हारा प्रेम और रानी  के आतिथ्य  ने हमें इतने दिन रुकने को बाध्य किया है। हमें  तुम्हारे साथ हर समय स्मरण रहेगा,"  नम्रता पूर्वक बोहेमियां के राजा ने उत्तर दिया। 

  राजा लिओन्टेस मित्र की बात को सुनकर उदास हो गए। उसने बार-बार मित्र से रूकने का आग्रह किया मगर राजा पोलिजिन  ने  अधिक रुकने में असमर्थता प्रकट की।

  राजा  लिओन्टेस  रानी हरमियोन  से  बोला-" हम चाहते हैं कि पोलिजिन  कुछ दिन और रुक जाते। तुम भी उससे आग्रह करना शायद तुम्हारे कहने पर कुछ दिन और ठहर जाएं।"

 रानी हरमियोंन ने कहा, "आज भोजन के समय उनसे कुछ और दिन ठहरने के लिए हम भी कहेंगे।

   उस रात्रि को भोजन के समय रानी हरमियोंन ने अपने अतिथि से कहा- "आप कुछ दिन और रुक जाए तो कितना अच्छा रहेगा। क्या आपको यहां कोई बात की असुविधा हो रही है जो आप तुरंत जाना चाहते हैं।"

 सुन्दरी हरमियोंन  के आग्रह को सुनकर राजा पोलिजिन  बोले- आप के आतिथ्य में कमी का तो कोई प्रश्न ही कहां है? आप जैसी सुंदर जब कह रही है तो मुझे अपने प्रस्थान पर विचार करना पड़ेगा, मैं 3 दिन और रुक जाऊंगा।

  प्रसन्न मुद्रा में रानी हरमियोंन ने अपने पति राजा लिओन्टेस  की ओर देखा जो विचित्र दृष्टि से उसकी ओर देख रहे थे। रानी हरमियोंन को यदि राजा  के मन में जो बात उठी थी उसका ज्ञान हो जाता तो वह शायद इतनी प्रसन्न  नहीं होती। राजा पोलीजीन द्धारा  अपनी प्रार्थना स्वीकार कर लेने में उसने  गर्व  पूर्ण दृष्टि से खुश होकर अपने पति की ओर देखा था।

राजा लियोन्टेस सर्वगुण संपन्न था, मगर उसमें एक बहुत भारी कमी यह थी कि वह शक्की  स्वभाव का था। रानी के आग्रह करने पर राजा पोलीजीन  का अपना प्रवास अधिक दिन तक बढ़ाने की स्वीकृति पर उसके मन में संदेह उत्पन्न हो गया। अपने पराजय के दु:ख के साथ उसके मन में संदेह का बीज पनप गया। उसे लगा कि उसका मित्र उसकी पत्नी की ओर आकर्षित है इसलिए उसके कहने पर उसने फौरन रुकने की बात मान ली।

  राजा पोलीजीन का आगे दिन रुकना उसके  मित्र के लिए कोई सुखद बात नहीं रही। राजा लियोन्टेस हर बात में अपनी पत्नी के प्रति शक करने लगा। उसे अपनी पत्नी का राजा पोलीजीन से बोलने में भी संदेह होने लगा कि उसकी पत्नी भी उसकी ओर आकर्षित है। दोनों राजा रानी के दांपत्य जीवन में जहर-सा घुलने ने लगा।

   तीन-दिन बाद राजा पोलीजीन  ने अपने मित्र से विदा लेते हुए कहा- "आप भी बोहेमिया आने का प्रोग्राम बनाइए। वहां रानी हरमियोन  जैसी सुंदरी तो आपका स्वागत नहीं कर सकेगी मगर अपने मित्र के मेहमान नवाजी से आपको निराश नहीं होना पड़ेगा।रानी जी को भी अवश्य लाइए।

 रानी हरमियोन ने भी अपने पति के मित्र को हंस कर विदा करते हुए कहा- 'हम भी अवश्य आएंगे। आप का साथ सुखद रहा है।"

 राजा पोलीजीन  के जाने के बाद राजा लिओन्टेस के कानों में बार-बार ये शब्द  गूंजने लगे "आपका साथ सुखद रहा।"

संदेह मनुष्य के मस्तिष्क को खराब कर देता है। उसे रानी  हरमियोंन के प्रति इतना संदेह हो गया कि वह मन-ही-मन उससे घृणा करने लगा। कुछ दिन बाद राजा लिओन्टेस को रानी हरमियोंन ने  शुभ समाचार दिया कि वह गर्भवती है।राजा लिओन्टेस प्रसन्न होने के बजाय मन-ही-मन संदेह की आग में जल उठा। उसने मन में विचार किया कि आने वाली संतान वास्तव में राजा पोलीजीन की होगी।

  धीरे-धीरे राजा लियोन्टेस का मन इतना खट्टा हो गया कि वह रानी से पीछा छुड़ाने की बात सोचने लगा। राजा लियोन्टेस का पुत्र मैमीलियस था जिससे वह बहुत प्रेम करता था। रानी हरमियोंन भी अपने पुत्र से बहुत स्नेह करती थी। परंतु उसके जीवन में लियोन्टेस के मित्र पॉलीजीन  के कारण राजा का मन  दुश्चिंता से भर गया।

  राजा लियोन्टेस  ने  अपने विश्वासी मंत्री कैमिलो को पुकार कर कहा ! "क्या यह बात तुमने देखी कि हमारे कहने से राजा पोलीजीन नहीं रुके। उनको अपने राज्य बोहेमिया की चिंता और अपने राजकुमार पलोरिजेज की याद आती रही परंतु रानी  के एक बार कहने पर ही वे सभी बातें भूल गए और 3 दिन के लिए अपना प्रस्थान रोक दिया।"

कैमिलो  ने कहा- "ऐसा तो हुआ था मालिक ! मगर इसका क्या अर्थ निकलता है, यह मेरे मेरी समझ में नहीं आया।

  इसका साफ अर्थ है कि पॉलीजीन का झुकाव हमारी अपेक्षा हमारी पत्नी की और अधिक था। हमें लगता है कि हरमियोंन ने पॉलीजीन को अधिक आकर्षित कर रखा है और हरमियोंन भी उसकी और हद से अधिक आकर्षित है।" राजा लोटस ने कहा।

 राजा के संदेह को जानकर मंत्री कैमिलो को मन- ही- मन अपने राजा की मूर्खता पर दया आई और वह प्रत्यक्ष में बोला,  "मगर रानी हरमियोन  आपके लिए पूर्ण समर्पित है।"

  "नहीं  मैं और धोखे में नहीं रह सकता। मुझे रानी  पर अब अधिक विश्वास नहीं रहा, राजा लिओन्टेस ने कहा-" तुम दगाबाज हरमियोन को सजा देने के लिए उसे विष दे दो।

   राजा की बात सुनकर कैमिलो कांप उठा, वह घुटनों के बल बैठ कर बोला- "नहीं मालिक! ऐसा कठिन आदेश ना दे! रानी गर्भवती है। इस प्रकार दो हत्याओं का बोझ मेरी आत्मा नहीं उठा सकेगी।"

  अपने मंत्री की बात सुनकर राजा  विचार में पड़ गया। रानी को महल में इस प्रकार मार डालने से छोटे राजकुमार मैमोलियस  को बहुत दुख होगा, साथ ही यूं भी अपनी अत्यंत प्रिय रही पत्नी  की ऐसी मत्यु से उनको सदैव दु:ख पहुँचेगा , यह सोचकर उन्होंने कमलों से पूछा , "फिर किस प्रकार रानी  से छुटकारा पाया जाए।

  कैमिलो ने कहा, "क्या यह संभव नहीं कि रानी जी को अपने देश से निर्वासित कर के अन्य जगह भेज दे जहां से उनका कोई समाचार आप तक नहीं आवे और उनको स्वयं ही भगवान अपने किए का दंड दे देगा।"

  अपने आने वाले क्रूर भविष्य से अनजान रानी हरमियोंन अपने महल में अपने राजकुमार  के साथ अपना मन बहला रही थी। सहसा राजा लियोन्टेस  ने  महल में प्रवेश किया। अपने पति को क्रोधित मुद्रा में देखकर रानी हरमियोंन खड़ी हो गई तथा बोली- "आज आप कुछ उदास दिखाई देते हैं? क्या बात है?

 राजा ने बज्रपात करते हुए कहा, "हमें तुम्हारे दु:चरित्र के विषय में निश्चय हो चुका है। तुम्हारी कुटिलता के लिए हम तुम को निर्वासित करने का दंड देते हैं।"

 रानी का मुख एकदम सफेद पड़ गया और वह मूर्छित होकर गिर पड़ी। परिचारिकाओ ने उस पर पानी छिड़कते हुए उसे होश  दिलाया।

  राजा लियोन्टेस ने रानी  की अनेक विनय करने पर भी एक ना सुनी और उसे एक छोटे जहाज पर सवार करके सिसली से निर्वासित कर दिया। कैमिलो भारी हृदय से उसे किसी निर्जन स्थान पर छोड़ने के लिए साथ रवाना हुआ। छोटा राजकुमार को राजा  ने अपने पास रख लिया।

   सिसली से रवाना होने के कुछ दिन बाद जहाज भयंकर तूफान में फस गया। तेज हवाओं ने उसे मार्ग से भटका दिया। अंत में एक चट्टान से टकराकर जहाज क्षतिग्रस्त हो गया। जहाज का एक टूटे हुए तख्ते के सहारे हरमियोन समुद्र में भयंकर लहरों में बहने लगी। भाग्य ने उसे लहरों के थपेड़ों से बोहेमिया के समुद्री रेतीले तट पर ला पटका। कैमिलो भी समुद्री झंझावात में एक नाव के सहारे बहुत दूर बोहेमिया के तट पर जा पहुंचा गया।

      सोलह  वर्ष बाद

  कैमिलो ने बोहेमिया के राजा पोलीजीन जी के समक्ष सिर झुका कर नम्रता पूर्वक कहा, "महाराज मुझे अपना देश छोड़े हुए 16 वर्ष हो गए। भाग्य ने मुझे आपके राज्य में सेवा करने का अवसर दिया। मेरा हृदय उस समय सिसली के महाराज के प्रति विद्रोह कर उठा था क्योंकि उन्होंने अत्यंत क्रूर कार्य किया था। अब उस बात का लंबा समय निकल चुका है, ह्रदय अपने देश में जाने को व्याकुल है। मैं चाहता हूं कि मेरी अन्त समय अपने ही मातृभूमि में हो।

  राजा पोलीजीन बोले, प्रिय कैमिलो हमने तुमको सदैव एक मित्र का सम्मान दिया है। तुम्हारे यहां रहने पर हम आभारी हैं। जब भी अपना देश जाना चाहो हम सम्मान पूर्वक तुम्हें विदा करेंगे। मगर इस समय हम अजीब दुविधा में पड़े हैं। तुम कुछ दिन और नहीं रुक रुक सकते।

 'अवश्य महाराज ! आपके छत्रछाया में इतना लंबा समय अत्यंत सुख पूर्वक बिताया है। आपने मुझे यथेष्ट सम्मान भी दिया। आपकी आज्ञा पाकर ही मैं यहां से जाऊंगा। कृपया बताइए आपकी क्या दुविधा है।'


   उदास होकर महाराज पोलीजीन बोले, बताओ मित्र कैमिलो" तुमने हमारे राजकुमार पलोरिजेल को कब देखा था? कैमिलो ने सोच कर बोला, "महाराज मैंने उनको 3 दिन पहले देखा था। इधर वे कुछ कम दिखाई देते हैं।

 "यही मेरी दुविधा है मित्र ! राजा होने पर भी मैं सुखी नहीं हूं। मुझे पता लगा है कि राजकुमार किसी चरवाहे की लड़की से प्रेम करता है और वह अक्सर वही चला जाता है।"


 कैमिलो ने कहा, "महाराज ! मैंने भी सुना है कि समुद्र तट के पास किसी चरवाहे की अत्यंत रूपवती और सुसंस्कृत एक लड़की है जिसकी कृति दूर-दूर तक फैली है फैली हुई है। यह भगवान की क्या है कि एक चरवाहे के यहां ऐसी कन्या उत्पन्न हुई है।"

 "हम चाहते हैं कि जाकर सही बात का पता लगाओ कैमिलो। कहीं हमारा पुत्र मार्ग से भटक कर किसी दुष्चक्र में ना फंस जाए।"

  आप जैसी आज्ञा दे वैसा करूं।

  राजा ने कहा"  हम स्वयं उस लड़की को देखना चाहते हैं जिसके रूप का जादू हमारे पुत्र पर चढ़ा हुआ है। हम और तुम वहां भेष बदलकर जाएंगे और देखेंगे।

  समुद्र किनारे चरवाहे के एक गांव में झोपड़ी में राजकुमार  अपने सपनों की रानी परिणीता से कह रहे थे "मेरा मन यहां से जाने का नहीं करता परंतु मुझे अपने माता-पिता के पास जाना है, अन्यथा उनको चिंता हो जाएगी। तुम्हारे पास मेरा समय इस प्रकार व्यतीत हो जाता है कि मुझे मालूम ही नहीं पड़ता।"

   परिणीता के माता ने कहा, "पलोरिजेल तुम को अवश्य ही चले जाना चाहिए। तुम्हारे माता-पिता निसंदेह चिंतित होंगे। अभी तक तुमने नहीं बताया कि तुम्हारे माता-पिता क्या करते हैं?"

  मैं शीघ्र ही अपने पिता को आपके बारे में बताऊंगा। अभी तक मैं अपने पिता से आपके बारे में कुछ नहीं कहा है। वही हमारे विवाह के लिए परिणीता  के नाना भोपास  से बात करेंगे।

  इसी समय झोपड़ी के बाहर बातचीत की आवाज आने लगी और चरवाहे भोपास के साथ लंबे चोंगे पहने हुए सफेद दाढ़ी वाले अंगद आगन्तुक ने झोपड़ी में कदम रखे।

  भोपास ने कहा, "प्रिय  देखो परिणीता पादरी चाचा तुमको यीशु का आशीर्वाद देने के लिए आए हैं।"

  दोनों पादरी परिणीता को देखकर बहुत प्रसन्न हुए उन्होंने उसे आशीर्वाद दिया। परिणीता के माता-पिता को भी आशीर्वाद दिया।

 भोपास बोला, "फादर यह स्त्री लगभग 16 साल पहले मुझे समुद्र के किनारे मुर्च्छित  अवस्था में मिली थी। यह मां बनने वाली थी। इसको मैंने पुत्री के समान पाला है। इसी की पुत्री परिणीता  है। मेरे भगवान यीशु से प्रार्थना है कि इस दुखियारी की पुत्री सदैव सुखी रहे।"

  पादरी बोले, "यीशु की कृपा से इस लड़की का भविष्य सुखमय रहे।"

 


   पादरियों के जाने के बाद राजकुमार भी शीघ्र आने का वादा कर वहां से चल दिए। पादरी वेश में राजा पोलीजीन  कन्या परिणीता को देखकर एकदम चमत्कृत हो गए। उसे इस बात का भी संतोष हुआ कि वह चरवाहे की पुत्री नहीं थी। राजा को विचार मग्न देखकर कैमिलो बोला, "महाराज मुझे तो ऐसा लगता है कि वह रानी हरमियोन के अतिरिक्त कोई नहीं है। समय व परिस्थिति के साथ ऐसा लगता है कि वह रानी हरमियोन है। उनकी मुखाकृति में ऐसा अंतर आ गया है कि वह पहचान में नहीं आती। संभव है कि जीवन में भयंकर कष्टों के कारण उसमें यह परिवर्तन हो गया हो।

  राजा ने विचार पूर्वक कहा, "तुम्हारी बात एक दम सही मालूम होती है। परंतु उसकी मां हरमियोन ने उसे राजकुमारियों के समान ही पाल- पोस कर बड़ा किया है। उस लड़की की मुखाकृति में हरमियोन की झलक है। मुझे अपने पुत्र  की पसंद पर गर्व है।"

 महाराज परिणीता चरवाहों में रही अवश्य है। परंतु उसकी मां हरमियोन  उसको राजकुमारियों के समान ही पाल- पोस कर बड़ा किया है, ऐसा उसके राजोचित व्यवहार से लगता है।

  "मगर  मेरे हृदय में लियोन्टेस की दुष्टता याद करके दुख होता है। उसकी घृणित कार्यवाही के कारण मुझे अपना निकट संबंध बनाने में हिचक हो रही है।"

 महाराज ! निसंदेह राजा लियोन्टेस ने उस समय महान भूल की थी। परंतु उसके दुष्कर्म की सजा आप अपने पुत्र व अबोध कन्या को तो नहीं दे सकते।"

   "तुम ठीक कहते हो कैमिलो, इसमें बेचारी परिणीता या रानी हरमियोन का कोई दोष नहीं।"

 राजकुमार पलोरिजेल को अपने पिता की परिणीता से विवाह की स्वीकृति पाकर प्रसन्नता का ठिकाना ना रहा। शीघ्र ही राजकीय धूम-धाम के साथ दोनों का विवाह संपन्न हो गया।

   कुछ दिन बाद कैमिलो ने फिर राजा पोलीजीन से सिसली जाने की आज्ञा मांगी। राजा ने बहुत धन-धान्य देकर अपने एक भव्य जहाज पर कैमिलो को स्वदेश भेज दिया। सिसली पहुंचकर एक दिन कैमिलो राजा लियोन्टेस के दरबार में गया। कैमिलो को यह देखकर अत्यंत दुख हुआ कि राजा लियोन्टेस साक्षात दु:ख की मूर्ति बने हुए हैं। रानी हरमियोन को निर्वाचित करके उसका जीवन दुख में हो गया है। शीघ्र ही उसको अपनी भूल समझ में आ गई थी। पश्चाताप के कारण उसका स्वास्थ्य एकदम गिर गया था। शरीर में अनेक रोग लग गए थे। उन्होंने रानी     हरमियोन की बहुत खोज करवाई मगर सब व्यर्थ गया। नाविकों ने आकर जहाज के नष्ट होने पर समाचार दिया था। उन्होंने उसे मृत समझ लिया था। उसके बाद वे अपने आप को कभी क्षमा नहीं कर पाए थे।

  अब 16 साल बाद कैमिलो को देखकर वे टूटे ह्रदय से बोले "प्रिय कैमिलो मैं एक अपराधी हूं। तुम  अपनी आप बीती सुनाओ कि उस तूफान में तुम कैसे बच गए।"

  कैमिलो ने अपनी सारी कहानी सुनाई तथा उसे यह सुनकर की रानी हरमियोन बोहेमिया में चरवाहे की बेटी बनकर रही उसकी पुत्री अब बोहेमिया के राजकुमार की पत्नी थी। उसका हृदय गदगद हो गया। भगवान ने उसके पाप की सजा उसकी पुत्री को नहीं दी थी।

   फौरन लिओन्टेस ने कैमिलो व अन्य दरबारियों को लेकर जहाज से बोहेमिया के लिए प्रस्थान किया। महारानी हरमियोन ने अपने पति को क्षमा कर दिया और राजा लियोन्टेस 16 वर्ष बाद अपने अभिन्न मित्र पोलीजीन के मेहमान बने। राजकुमार पलोरीजेल को जामाता के रूप में पाकर उन्होंने अपने को धन्य समझा।

 

Thursday 3 September 2020

Hindi story-वीर सरदार

  वीर सरदार

राणा अमर सिंह ने मुगल सैनिकों के साथ वीरता पूर्वक युद्ध करने के पुरस्कार में सकतावत सरदारों को सेना की ‘हरावल’ (आगे चलने) का अधिकार दिया लेकिन सेना की हरावल का अधिकार पुराने समय से चंदावत सरदारों का था जब चंदावत सरदारों को इस बात का पता लगा तो वे तुरंत घोड़े पर सवार होकर राणा के पास आए और बोले मेरे कुल में पुराने समय से हरावल का अधिकार आ रहा है, मैं इसे छोड़ नहीं सकता

सकतावत सरदार भी वहां थे उन्होंने क्रोध में भरकर कहा हरावल का अधिकार राणा ने हमें दिया है, हम इसे दूसरे किसी को लेने नहीं देंगे

राणा ने देखा कि दोनों सरदार परस्पर युद्ध करने को तलवार खींच रहे हैं इसलिए उन्होंने कहा- "हरावल का अधिकार तो वीर का अधिकार है, जो अधिकार अधिक वीर होगा उसी को यह अधिकार मिलेगा।"


चंदावत सरदार तलवार खींचकर गरज उठे
 चंदावत वीर नहीं है, यह जिसे भ्रम हो वह युद्ध करने आ जाए सकतावत  सरदारों ने भी तलवारें निकाल ली, लेकिन राणा ने उन्हें रोककर कहा- मुगल सेना हमारे चारों ओर पड़ी है, हमें मुगलों से अपने देश का उद्धार करना है ऐसी दशा में हमारा एक भी सरदार बे वजह प्राण दे, यह मैं नहीं चाहता मैं ने निर्णय किया है कि फुटल के किले में जो पहले घुसेगा, उसी को सेना के आगे चलने का पद 'हरावल' दिया जाएगा

सब ने राणा के निर्णय की प्रशंसा की उदयपुर से 18 मील पर चित्तौड़ के रास्ते पर फुटल का किला था उस पर मुगल सेना का अधिकार था किले के नीचे एक तेज धार वाली नदी बहती थी किला दुर्गम पहाड़ी पर था और अजय समझा जाता था सकतावत और चंदावत सरदारों ने अपनी-अपनी सेना सजाई और अलग-अलग रास्ते से फुटल किले पर चढ़ाई करने चल पड़े


सकतावत सरदार अपनी सेना के साथ पहले पहुंचे लेकिन शीघ्रता में वे लोग सीढ़ियां और रसिया लाना भूल गए थे
 अब लौटने पर डर था कि चंदावत आ जाएंगे और किले पर पहला अधिकार कर लेंगे इसलिए उन लोगों ने फाटक तोड़ने का निश्चय किया किले के मुगल सैनिक सकतावत वीरों के हाथों गाजर मूली की भांति कटने लगे

इतने में चंदावत सरदार भी सेना के साथ आ पहुंचे उन लोगों ने सीढ़ी लगाई और किले पर चढ़ने लगे अब सकतावत  सरदारों से रहा नहीं गया, किले का फाटक तोड़ने के लिए हाथी बढ़ाया गया परंतु फाटक में नुकीली किल लगी थी हाथी उन पर टक्कर नहीं मार सकता था शक्तावत सरदार अतुल सिंह ने देखा चंदावत अब दीवाल पर चढ़ना ही चाहते हैं, वह घोड़े से कूदा और किले के फाटक से पिठ सटा कर खड़ा हो गया, बड़े दृढ़ स्वर में उसने आज्ञा दी हाथी 'हुलो'

महावत काप गया, हाथी टक्कर मारे तो सरदार की मृत्यु निश्चित हैलेकिन अचल सिंह ने महावत को हिचकते देखा, देख कहा- देखता नहीं चंदावत दुर्ग पर चढ़े जा रहे हैं तुझे सकतावत की आन रखनी हैदांत पर दांत दबाकर महावत ने हाथी को अंकुश मारा हाथी ने पूरे जोर से अचल सिंह की छाती पर अपने सिर से टक्कर मार दी, अचल सिंह का देह फट के किले से टकरा कर उसमें चिपक गया, किंतु किले का फाटक चरमरा कर टूट पड़ा और गिर पड़ा

उधर चंदावत सरदार ने किले पर चढ़ते चढ़ते देख लिया था, कि किले का द्वार टूट गया है और सकतावत अब विजयी  होने वाले हैं चंदावत सरदार ने अपने साथी से कहा मेरा सिर काट लो और झटपट किले के भीतर फेंक दो चंदावत सरदार का सिर कटा, सिर किले के भीतर पहले पहुंच गया राणा की सेना में हरावल का अधिकार चंदावतो के पास वंश परंपरा से था, और सुरक्षित रह गया किंतु यह निर्णय करना किसी के लिए सरल कहां है, कि शक्तावत और चंदावत सरदारों में से अधिक वीर कौन था

देश जाति एवं कुल की मर्यादा की रक्षा के लिए हंसते-हंसते प्राण देने वाले वे धन्य हैं और धन्य है ऐसे वीरों को उत्पन्न करने वाली भारत भूमि


Friday 28 August 2020

King Manik Chandra's generosity

 राजा माणिक चंद्र की उदारता

बंगाल में गुसकरा एक छोटा सा स्टेशन है एक दिन रेलगाड़ी आकर स्टेशन पर खड़ी हुई उतरने वाले झटपट उतरने लगे और चढ़ने वाले दौड़-दौड़ कर गाड़ी में चढ़ने लगे एक बुढ़िया भी गाड़ी से उतरी उसने अपनी गठरी खिसका कर डिब्बे के दरवाजे पर तो कर ली थी; किन्तु बहुत चेष्टा करके भी उतार नहीं पाई थी कई लोग गठरी को लांघते हुए डिब्बे में चढ़े और डिब्बे से उतरे बुढ़िया ने कई लोगों से बड़ी दीनता से प्रार्थना की कि उसकी गठरी उसके सिर पर उठा कर रख दे ; किंतु किसी ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया लोग ऐसे चले जाते थे, मानो बहरे हो गाड़ी छूटने का समय हो गयाबेचारी बुढ़िया इधर-उधर बड़ी व्याकुलता से देखने लगी उसकी आंखों से टप-टप आंसू गिरने लगे

  एकाएक प्रथम श्रेणी के डिब्बे में बैठे एक सज्जन की दृष्टि बुढ़िया पर पड़ी गाड़ी छूटने की घंटी बज चुकी थी; किन्तु  उन्होंने इसकी परवाह नहीं कि अपने डिब्बे से वह शीघ्रता से उतरे और बुढ़िया की गठरी उठाकर उन्होंने उसके सिर पर रख दी वहां से बड़ी शीघ्रता से अपने डिब्बे में जाकर जैसे ही वह बैठे, गाड़ी चल पड़ी बढ़िया सिर पर गठरी गठरी लिए उन्हें आशीर्वाद दे रही थी- 'बेटा ! भगवान तेरा भला करे।'

  आप जानते हो की बुढ़िया की गठरी उठा देने वाले सज्जन कौन थे? वे थे कासिम बाजार के राजा  माणिक चंद्र नन्दी , जो उस गाड़ी से कोलकाता जा रहे थे सचमुच वे राजा थे, क्योंकि सच्चा राजा वह नहीं है जो धनी है या बड़ी सेना रखता है सच्चा राजा वह है, जिसका हृदय उदार है, जो दीन दु:खियों और दुर्बलो की सहायता कर सकता है? ऐसे सच्चे राजा बनने का तुम में से सबको अधिकार है तुम्हें इसके लिए प्रयत्न करना चाहिए

Monday 24 August 2020

अपना काम आप करने में लाज कैसी?

 अपना काम आप करने में लाज कैसी?

  एक बार एक ट्रेन बंगाल में एक देहाती स्टेशन पर रुकी गाड़ी रुकते ही एक सजे-धजे युवक ने 'कुली ! कुली ! पुकारना प्रारंभ किया युवक ने बढ़िया पतलून पहन रखा था, पतलून के रंग का ही उसका कोट था, सिर पर हैट था, गले में टाई बंधी थी और उसका बूट चम-चम चमक रहा था

  देहात के स्टेशन पर कुली तो होते नहीं बेचारा युवक बार-बार पुकारता था और इधर-उधर हैरान होकर देखता था उसी समय वहां सादे स्वच्छ कपड़े पहने एक सज्जन आए उन्होंने युवक का सामान उतार लिया युवक ने उनको कुली समझावह डाटँते हुए बोला- 'तुम लोग बड़े सुस्त हो मैं कब से पुकार रहा हूं

  उन सज्जन ने कोई उत्तर नहीं दिया युवक के पास हाथ में ले चलने का एक छोटा बॉक्स (हैंडबैग) था और एक छोटा- सा बंडल था उसे लेकर युवक के पीछे-पीछे वे उसके घर तक गए घर पहुंचकर युवक ने उन्हें देने के लिए पैसे निकालेलेकिन पैसे लेने के बदले वे सज्जन पीछे लौटते हुए बोले- 'धन्यवाद !'

  युवक को बड़ा आश्चर्य हुआ यह कैसा कुली है कि बोझ ढोकर भी पैसे नहीं लेता और उल्टा धन्यवाद देता है उसी समय वहां उस युवक का बड़ा भाई आ गया उसने जो उन सज्जन की ओर देखा तो ठक-से रह गया उसके मुख से केवल इतना निकला- 'आप !'

  जब उस युवक को पता लगा कि जिसे उसने कुली समझ कर डाटा था और जो उसका सामान उठा लाए थेवह दूसरे कोई नहीं, वे तो बंगाल के प्रसिद्ध महापुरुष पंडित ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी हैं, तो वह उनके चरणों पर गिर पड़ा और क्षमा मांगने लगा

ईश्वर चंद्र जी ने उसे उठाया और कहा- 'इसमें क्षमा मांगने की कोई बात नहीं है हम सब भारतवासी हैं हमारा देश अभी गरीब है हमें अपने हाथ से अपना काम करने में लज्जा क्यों करनी चाहिए अपने हाथ से अपना काम कर लेना तो संपन्न देशों में भी गौरव की बात मानी जाती है

देश-भक्त

देश-भक्त 

  राजपूताना में बूंदी- राज्य पहले चित्तौड़ के अधीन था; किंतु पीछे वह स्वाधीन हो गया जब चित्तौड़ के राणा दिल्ली के बादशाह के आक्रमणों से कुछ निश्चित हुए, तब उन्होंने बूंदी पर आक्रमण करके उसे फिर से चित्तौड़ के अधीन बनाने का निश्चय किया एक सेना सजा कर वे चल पड़े और बूंदी के पास निमोरिया में पड़ाव डालकर रुके बूंदी के राजा हाड़ा को इसका समाचार मिला उन्होंने अपने चुने हुए पाँच सौ योद्धाओं को साथ लिया और रात के समय राणा की सेना पर छापा मारा

  चित्तौड़ के सैनिक बेखबर थे अचानक आक्रमण होने से उनके सहस्त्रों वीर मारे गए राणा को पराजित होकर चित्तौड़ लौटना पड़ा इस पराजय से राणा क्रोध में भर गए उन्होंने प्रतिज्ञा कि-' जब तक बूंदी के किले को गिरा नहीं दूंगा, अन्न- जल नहीं लूंगा।'

  चित्तौड़ से बूंदी 32 कोस है सेना एकत्र करने, बूंदी तक जाने में समय तो लगना ही था यह भी पता नहीं था कि युद्ध कितने दिन चलेगा राणा की प्रतिज्ञा सुनकर चित्तौड़ के सामंत और मंत्री बहुत दुखी हुए उन्होंने राणा को समझाया-'आपकी प्रतिज्ञा बहुत कड़ी है बूंदी जितना तो है ही; किंतु आप तब तक अन्न-जल ना लेने की प्रतिज्ञा छोड़ दें।'

 राणा ने कहा- 'प्रतिज्ञा तो प्रतिज्ञा है मैं अपनी प्रतिज्ञा झूठी नहीं करूंगा।'

  अन्त में मंत्रियों ने एक उपाय निकालाउन्होंने चित्तौड़ में बूंदी का एक नकली किला बनाने का विचार किया और राणा से कहा- 'आप बूंदी के नकली किले को गिराकर प्रतिज्ञा पूरी कर लीजिए और अन्य-जल ग्रहण कीजिए दो-चार दिनों में सेना एकत्र करके बूंदी पर सुविधा अनुसार आक्रमण किया जाएगा।'

  राणा ने मंत्रियों की बात मान ली बूंदी का नकली किला बनाया जाने लगा बूंदी में हाड़ा जाति के राजपूतों का राज्य था बूंदी के हाड़ा जाति के कुछ राजपूत चित्तौड़ की सेना में भी थे उनकी सैनिक टुकड़ी के नायक का नाम कुम्भा वैरसी था कुम्भा उस दिन वन से आखेट करके लौट रहे थे तो उन्होंने बूंदी का नकली किला बनते देखा पूछने पर उन्हें राणा की प्रतिज्ञा और मंत्रियों के सलाह की सब बातों का पता लगा कुम्भा बड़ी शीघ्रता से अपने डेरे पर आए उन्होंने अपनी टुकड़ी के सब हाड़ा राजपूत सैनिकों को इकट्ठा किया सब बातें बताकर वह बोले- 'जहां एक भी सच्चा देश-भक्त होता है, वहां वह अपने जीते जी अपने देश के झंडे या अपने देश के किसी आदर्श चिन्ह का अपमान नहीं होने देता यह बूंदी का नकली किला झंडे के समान बूंदी का चिन्ह बनाया जा रहा है और इसी भाव से उसे तोड़ने की बात सोची गई है यह हमारी जन्मभूमि का अपमान है अपने जीते जी हम यह अपमान नहीं होने देंगे।'

  ठीक समय पर राणा जी थोड़ी सेना लेकर नकली किला तोड़ने गए तो उन्होंने देखा कि कुम्भा वैरसी अपने सैनिकों के साथ उस किले की रक्षा के लिए हथियारों से सजा खड़ा है कुम्भा ने राणा से कहा- हम लोग आपके सेवक हैं हमने आपका नमक खाया है आप बूंदी पर आक्रमण करें तो हम आप का विरोध नहीं करेंगे दूसरे किसी आक्रमण में हम आपकी रक्षा के लिए, आपकी आज्ञा का पालन करने के लिए बड़ी प्रसन्नता से प्राण दे सकते हैं, किन्तु अपनी जन्मभूमि का हम इस प्रकार अपमान नहीं देख सकते हमारे जीते-जी आप इस नकली किले को तोड़ नहीं सकते

  राणा को क्रोध आया बड़ा भरे युद्ध छिड़ गया जिस नक़ली किले को तोड़ना राणा और उनके मंत्रियों ने बहुत सरल समझा था, उसके लिए उन्हें बड़ा भयानक युद्ध करना पड़ा कुंभा और उनके साथियों की जब लोथें गिर गई, तभी राणा उस नकली किले को तोड़ सके

  किले को तोड़कर राणा ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर ली, किन्तु कुम्भा- जैसे वीर के मरने का उन्हें बड़ा दु:ख हुआ उन्होंने कुम्भा की वीरता का सम्मान करने के लिए बूंदी पर आक्रमण करने का विचार छोड़ दिया और वहां के राजा को बुलाकर उनसे मित्रता कर ली

 कुम्भा- जैसे देश-भक्त एवं वीर ही देश को स्वाधीन एवं गौरवशाली बनाते हैं 

Sunday 23 August 2020

संयमराय का अपूर्व त्याग

 संयमराय का अपूर्व त्याग

  दिल्ली के प्रतापी राजा पृथ्वीराज और महोबे के राजा पिरमाल में बहुत दिनों से शत्रुता थी परिमाल ने अवसर पाकर पृथ्वीराज की एक सैनिक टुकड़ी पर आक्रमण किया और उसके कुछ सैनिकों को उन्होंने बंदी बना लिया यह समाचार जब दिल्ली पहुंचा, तब राजा पृथ्वीराज क्रोध में भर गए उन्होंने सेना सजा सजायी और महोबे पर आक्रमण कर दिया

  मोहेबे के राजा परिमाल भी बड़े वीर थे उनकी सेना में आल्हा और उदल- जैसे वीर सामंन्त थे आल्हा- उदल की वीरता का लो अब तक वर्णन करते हैं परिमाल ने आल्हा- उदल और अपने दूसरे सब सैनिकों के साथ पृथ्वीराज का सामना किया बड़ा भयंकर युद्ध हुआ लेकिन दिल्ली की विशाल सेना के आगे महोबे के वीर टिक नहीं सके राजा पृथ्वीराज विजय हुए महोबे कि सेना युद्ध में मारी गई परिमाल भी मारे गये लेकिन दिल्ली की सेना भी मारी गई और पृथ्वीराज भी घायल होकर युद्ध भूमि में गिर गए

  सच्ची बात यह है कि उस युद्ध में कौन विजय हुआ, यह कहना ही कठिन है दोनों ओर के प्रायः सभी योद्धा पृथ्वी पर पड़े थे अन्तर इतना ही था कि महोबे के राजा और उनके वीरों ने प्राण छोड़ दिए थे और पृथ्वीराज तथा उनके कुछ सरदार घायल होकर गिर थे वे जीवित तो थे; किंतु इतने घायल हो गए थे कि हिल भी नहीं सकते थे

जब दोनों ओर के वीर युद्ध में मरकर या घायल होकर गिर गए और युद्ध की हलचल दूर हो गई, वहां झुंड- के- झुंड गीध  आकाश से उतर पड़े वे मरे और घायल लोगों को नोच- नोच कर खाने लगे उनकी आंखें और आंते निकालने लगे बेचारे घायल लोग चीखने और चिल्लाने को छोड़कर और क्या कर सकते थे वे उन गधों को भगा सके, इतनी शक्ति भी उनमें नहीं थी

  राजा पृथ्वीराज जी घायल होकर दूसरे घायलों के बीच में पडे थे वे मूर्छित हो गए थे गिद्धों का एक झुंड उनके पास भी आया और आस-पास के लोगों को नोच- नोच कर खाने लगा पृथ्वीराज के वीर सामंत संयम राय भी युद्ध में पृथ्वीराज के साथ आए थे और युद्ध के समय पृथ्वीराज के साथ ही घायल होकर उनके पास ही गिरे थे

संयम राय की मूर्छा दूर हो गई थी, किंतु वे भी इतने घायल थे कि उठ नहीं सकते थे युद्ध में अपनी इच्छा से ही वे राजा पृथ्वीराज के अंगरक्षक बने थे उन्होंने पड़े-पड़े देखा कि गिद्धों का झुंड राजा पृथ्वीराज की ओर बढ़ता जा रहा है वे सोचने लगे- 'राजा पृथ्वीराज मेरे स्वामी हैं उन्होंने सदा मेरा सम्मान किया है मुझ पर वे सदा कृपा करते थे उनकी रक्षा के लिए प्राण दे देना तो मेरा कर्तव्य ही था और युद्ध में तो मैं उनका अंगरक्षक बना था मेरे देखते-देखते गीध उनके शरीर को नोच कर खा ले, तो मेरे जीवन को धिक्कार है

संयम राय ने बहुत प्रयत्न किया, किंतु वह उठ नहीं सके गीध पृथ्वीराज के पास पहुंच गए थे, अन्त में वीर संयम राय को एक उपाय सूझा गया पास पड़ी एक तलवार किसी प्रकार खिसका कर उन्होंने उठा ली और उससे अपने शरीर का मांस काट-काटकर गिद्धों की और फेंकने लगे गिद्धों को मांस की कटी बोटियां मिलने लगी तो वे उसको झपट्टा मारकर लेने लगेमनुष्यों के देह नोचना उन्होंने बंद कर दिया

  राजा पृथ्वीराज की मूर्छा टूटी उन्होंने अपने पास गिद्धों का झुंड देखा उन्होंने यह भी देखा कि संयम राय उन गिद्धों को अपना मांस काट-काट कर खिला रहे हैं इतने में पृथ्वीराज के कुछ सैनिक वहां आ गए वे राजा और उनके दूसरे घायल सरदारों को उठाकर ले जाने लगे; किंतु स्वयं राय अपने शरीर का इतना मांस गिद्धों को काट-काट कर खिला चुके थे कि उनको बचाया भी नहीं जा सका अपने कर्तव्य के पालन में अपने देह का मांस अपने हाथों काटकर गिद्धों को देने वाला वह वीर युद्धभूमि में सदा के लिए सो गया था

Wednesday 19 August 2020

भामाशाह का त्याग

 भामाशाह का त्याग
 
चित्तौड़ पर अकबर की सेना ने अधिकार कर लिया था महाराणा प्रताप अरावली पर्वत के वनों में अपने परिवार तथा राजपूत सैनिकों के साथ जहां-तहां भटकते-फिरते थे महाराणा तथा उनके छोटे बच्चों को कभी-कभी दो-दो, तीन-तीन दिनों तक घास के बीजों की बनी रोटी तक नहीं मिलती थी चित्तौड़ के महाराणा और सोने के पलंग पर सोने वाले उनके बच्चे भूखे-प्यासे पर्वत की गुफाओं में घास-पत्ते खाते और पत्थर की चट्टान पर सोते थे लेकिन महाराणा प्रताप को इन सब कष्टों की चिंता नहीं थी उन्हें एक ही धुन था कि शत्रु से देश का-चित्तौड़ की पवित्र भूमि का उद्धार कैसे किया जाए
                                                                                                  किसी के पास काम करने का साधन ना हो तो उसका अकेला उत्साह क्या काम आवे महाराणा प्रताप और दूसरे सैनिक भी कुछ दिन भूखे-प्यासे रह सकते थे; किन्तु भूखे रहकर युद्ध कैसे चलाया जा सकता है घोड़ों के लिए, हथियारों के लिए, सेना को भोजन देने के लिए तो धन चाहिए महाराणा के पास फूटी कौड़ी नहीं थी उनके राजपूत और भील सैनिक अपने देश के लिए मर-मिटने को तैयार थे उन देशभक्तों वीरों को वेतन नहीं लेना था; किन्तु बिना धन के घोड़े कहां से आयेगे,  हथियार कैसे बनायेगे, मनुष्य और घोड़ो को भोजन कैसे दिया जाय इतना भी प्रबंध ना हो तो दिल्ली के बादशाह की सेना से युद्ध कैसे चले महाराणा प्रताप को बड़ी निराशा हो रही थी अंत में एक दिन महाराणा ने अपने सरदारों से विदा ली, भीलों को समझाकर लौटा दिया प्राणों से प्यारी जन्म-भूमि को छोड़कर महाराणा राजस्थान से कहीं बाहर जाने को तैयार हुए

 
जब महाराणा अपने सरदारों को रोता छोड़कर महारानी और बच्चों के साथ वन के मार्ग से जा रहे थे, महाराणा के मंत्री भामाशाह घोड़ा दौड़ते आए और घोड़े से कूदकर महाराणा के पैरों पर गिरकर फूट-फूट कर रोने लगे-' आप हम लोगो को अनाथ करके कहां जा रहे हैं?

  महाराणा प्रताप ने भामाशाह को उठाकर हृदय से लगाया और आंसू बहाते हुए कहा- 'आज भाग्य हमारे साथ नहीं है अब यहां रहने से क्या लाभ? मैं इसलिए जन्मभूमि छोड़कर जा रहा हूं कि कहीं कुछ धन मिल जाए तो उससे सेना एकत्र करके फिर चित्तौड़ का उद्धार करने लौटू आप लोग तब तक धैर्य धारण करें।'
  भामाशाह ने हाथ जोड़कर कहा-' महाराणा आप मेरी एक बात ना मान लें।'
  महाराणा प्रताप बड़े स्नेह से बोले-' मंत्री ! मैंने आपकी बात कभी टाली है क्या?'
 भामाशाह के पीछे उनके बहुत-से सेवक घोड़ों पर अशर्फियो के थैले लादे ले आय थे भामाशाह ने महाराणा के आगे उन अशर्फियों का बड़ा भारी ढेर लगा दिया और फिर हाथ जोड़कर बड़ी विनम्रता से कहा- ' महाराणा ! यह सब धन आपका ही है मैंने और मेरे बाप-दादों ने चित्तौड़ के राजदरबार की कृपा से ही इसे इकट्ठा किया है आप कृपा करके इसे स्वीकार कर लीजिए और इससे देश का उद्धार कीजिए
  महाराणा प्रताप ने भामाशाह को हृदय से लगा लिया उनकी आंखों से आंसू की बूंदे टप टप गिरने लगी वह बोले लोग- प्रताप को देश का उद्धारक कहते हैं, किंतु इस पवित्र भूमि का उद्धार तो तुम्हारे- जैसे उदार पुरुषों से होगा तुम धन्य हो भामाशाह?'
 उस धन से महाराणा प्रताप ने सेना इकट्ठा की और मुगल सेना पर आक्रमण किया मुगलों के अधिकार की बहुत- सी भूमि महाराणा ने जीत ली और उदयपुर में अपनी राजधानी बना ली
 महाराणा प्रताप की वीरता जैसे राजपूताना के इतिहास में विख्यात है, वैसे ही भामाशाह का त्याग भी विख्यात विख्यात है ऐसे त्यागी पुरुष ही देश के गौरव होते हैं

Hindi story-भाग्य का खेल (शंका,संदेह)

  भाग्य का खेल       बहुत वर्षों पहले इसकी सिसली में राजा लिओन्टेस राज्य करता था। इटली के पास सिसली एक बड़ा टापू है। राजा लिओन्टेस के राज्य ...