Friday 28 August 2020

King Manik Chandra's generosity

 राजा माणिक चंद्र की उदारता

बंगाल में गुसकरा एक छोटा सा स्टेशन है एक दिन रेलगाड़ी आकर स्टेशन पर खड़ी हुई उतरने वाले झटपट उतरने लगे और चढ़ने वाले दौड़-दौड़ कर गाड़ी में चढ़ने लगे एक बुढ़िया भी गाड़ी से उतरी उसने अपनी गठरी खिसका कर डिब्बे के दरवाजे पर तो कर ली थी; किन्तु बहुत चेष्टा करके भी उतार नहीं पाई थी कई लोग गठरी को लांघते हुए डिब्बे में चढ़े और डिब्बे से उतरे बुढ़िया ने कई लोगों से बड़ी दीनता से प्रार्थना की कि उसकी गठरी उसके सिर पर उठा कर रख दे ; किंतु किसी ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया लोग ऐसे चले जाते थे, मानो बहरे हो गाड़ी छूटने का समय हो गयाबेचारी बुढ़िया इधर-उधर बड़ी व्याकुलता से देखने लगी उसकी आंखों से टप-टप आंसू गिरने लगे

  एकाएक प्रथम श्रेणी के डिब्बे में बैठे एक सज्जन की दृष्टि बुढ़िया पर पड़ी गाड़ी छूटने की घंटी बज चुकी थी; किन्तु  उन्होंने इसकी परवाह नहीं कि अपने डिब्बे से वह शीघ्रता से उतरे और बुढ़िया की गठरी उठाकर उन्होंने उसके सिर पर रख दी वहां से बड़ी शीघ्रता से अपने डिब्बे में जाकर जैसे ही वह बैठे, गाड़ी चल पड़ी बढ़िया सिर पर गठरी गठरी लिए उन्हें आशीर्वाद दे रही थी- 'बेटा ! भगवान तेरा भला करे।'

  आप जानते हो की बुढ़िया की गठरी उठा देने वाले सज्जन कौन थे? वे थे कासिम बाजार के राजा  माणिक चंद्र नन्दी , जो उस गाड़ी से कोलकाता जा रहे थे सचमुच वे राजा थे, क्योंकि सच्चा राजा वह नहीं है जो धनी है या बड़ी सेना रखता है सच्चा राजा वह है, जिसका हृदय उदार है, जो दीन दु:खियों और दुर्बलो की सहायता कर सकता है? ऐसे सच्चे राजा बनने का तुम में से सबको अधिकार है तुम्हें इसके लिए प्रयत्न करना चाहिए

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