वीर सरदार

सकतावत सरदार भी वहां थे। उन्होंने क्रोध में भरकर कहा हरावल का अधिकार राणा ने हमें दिया है, हम इसे दूसरे किसी को लेने नहीं देंगे।
राणा ने देखा कि दोनों सरदार परस्पर युद्ध करने को तलवार खींच रहे हैं। इसलिए उन्होंने कहा- "हरावल का अधिकार तो वीर का अधिकार है, जो अधिकार अधिक वीर होगा उसी को यह अधिकार मिलेगा।"

चंदावत सरदार तलवार खींचकर गरज उठे। चंदावत वीर नहीं है, यह जिसे भ्रम हो वह युद्ध करने आ जाए। सकतावत सरदारों ने भी तलवारें निकाल ली, लेकिन राणा ने उन्हें रोककर कहा- मुगल सेना हमारे चारों ओर पड़ी है, हमें मुगलों से अपने देश का उद्धार करना है। ऐसी दशा में हमारा एक भी सरदार बे वजह प्राण दे, यह मैं नहीं चाहता। मैं ने निर्णय किया है कि फुटल के किले में जो पहले घुसेगा, उसी को सेना के आगे चलने का पद 'हरावल' दिया जाएगा।
सब ने राणा के निर्णय की प्रशंसा की। उदयपुर से 18 मील पर चित्तौड़ के रास्ते पर फुटल का किला था। उस पर मुगल सेना का अधिकार था। किले के नीचे एक तेज धार वाली नदी बहती थी। किला दुर्गम पहाड़ी पर था और अजय समझा जाता था। सकतावत और चंदावत सरदारों ने अपनी-अपनी सेना सजाई और अलग-अलग रास्ते से फुटल किले पर चढ़ाई करने चल पड़े।

सकतावत सरदार अपनी सेना के साथ पहले पहुंचे लेकिन शीघ्रता में वे लोग सीढ़ियां और रसिया लाना भूल गए थे। अब लौटने पर डर था कि चंदावत आ जाएंगे और किले पर पहला अधिकार कर लेंगे। इसलिए उन लोगों ने फाटक तोड़ने का निश्चय किया। किले के मुगल सैनिक सकतावत वीरों के हाथों गाजर मूली की भांति कटने लगे।
इतने में चंदावत सरदार भी सेना के साथ आ पहुंचे। उन लोगों ने सीढ़ी लगाई और किले पर चढ़ने लगे। अब सकतावत सरदारों से रहा नहीं गया, किले का फाटक तोड़ने के लिए हाथी बढ़ाया गया परंतु फाटक में नुकीली किल लगी थी। हाथी उन पर टक्कर नहीं मार सकता था। शक्तावत सरदार अतुल सिंह ने देखा चंदावत अब दीवाल पर चढ़ना ही चाहते हैं, वह घोड़े से कूदा और किले के फाटक से पिठ सटा कर खड़ा हो गया, बड़े दृढ़ स्वर में उसने आज्ञा दी हाथी 'हुलो'।

उधर चंदावत सरदार ने किले पर चढ़ते चढ़ते देख लिया था, कि किले का द्वार टूट गया है। और सकतावत अब विजयी होने वाले हैं। चंदावत सरदार ने अपने साथी से कहा मेरा सिर काट लो और झटपट किले के भीतर फेंक दो। चंदावत सरदार का सिर कटा, सिर किले के भीतर पहले पहुंच गया। राणा की सेना में हरावल का अधिकार चंदावतो के पास वंश परंपरा से था, और सुरक्षित रह गया। किंतु यह निर्णय करना किसी के लिए सरल कहां है, कि शक्तावत और चंदावत सरदारों में से अधिक वीर कौन था।
देश जाति एवं कुल की मर्यादा की रक्षा के लिए हंसते-हंसते प्राण देने वाले वे धन्य हैं। और धन्य है ऐसे वीरों को उत्पन्न करने वाली भारत भूमि।
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