Saturday 12 September 2020

Hindi story-भाग्य का खेल (शंका,संदेह)

 भाग्य का खेल

 


    बहुत वर्षों पहले इसकी सिसली में राजा लिओन्टेस राज्य करता था। इटली के पास सिसली एक बड़ा टापू है। राजा लिओन्टेस के राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी। राजा लिओन्टेस की बहुत ही सुंदर रानी थी जिसका नाम हरमियोंन था। रानी इतनी सुंदर थी कि उसकी सुंदरता की प्रसिद्धि दूर-दूर तक थी।

  सिसली में भूमध्य सागर के दूसरे किनारे पर अफ्रीका का एक राज्य बोहेमिया था। बोहेमिया का राजा पोलीजीन था ,जो बहुत शक्तिशाली था। सिसली और बोहेमिया के राजाओं में गहरी मित्रता थी। दोनों के राज्यों में आपस में व्यापार भी होता था तथा एक दूसरे के प्रति दोनों राजा सदभाव रखते थे।

  एक बार बोहेमिया के राजा पोलीजीन अपने मित्र लिओन्टेस के पास आए। बहुत राजकीय सम्मान के साथ दोनों मित्र मिले।  राजा लिओन्टेस ने अपने मित्र की बहुत आवभगत की तथा अपने महल के हिस्से में उसको पूर्ण सम्मान के साथ ठहराया। रानी हरमियोंन ने भी राजा का बहुत स्वागत किया तथा हर प्रकार से उसके आराम का इंतजाम किया जिससे शाही मेहमान को असुविधा ना हो।

  इस प्रकार राजा पोलीजीन अपने मित्र के पास लगभग एक  माह तक वहीं रुका। अंत में एक  दिन मेहमान ने जाने की इच्छा प्रकट की।

  राजा लिओन्टेस ने अपने मित्र से कहा कि मित्र! तुम्हारे साथ हमारा समय ऐसे निकल गया कि हमें मालूम ही नहीं हुआ। थोड़े दिन और यहीं रुक जाओ। तुम्हारे राज्य के समाचार तो तुम्हारे पास आते ही रहते हैं।

  "परंतु मित्र अब हमें यहां इतने दिन हो गए हैं तुम्हारा प्रेम और रानी  के आतिथ्य  ने हमें इतने दिन रुकने को बाध्य किया है। हमें  तुम्हारे साथ हर समय स्मरण रहेगा,"  नम्रता पूर्वक बोहेमियां के राजा ने उत्तर दिया। 

  राजा लिओन्टेस मित्र की बात को सुनकर उदास हो गए। उसने बार-बार मित्र से रूकने का आग्रह किया मगर राजा पोलिजिन  ने  अधिक रुकने में असमर्थता प्रकट की।

  राजा  लिओन्टेस  रानी हरमियोन  से  बोला-" हम चाहते हैं कि पोलिजिन  कुछ दिन और रुक जाते। तुम भी उससे आग्रह करना शायद तुम्हारे कहने पर कुछ दिन और ठहर जाएं।"

 रानी हरमियोंन ने कहा, "आज भोजन के समय उनसे कुछ और दिन ठहरने के लिए हम भी कहेंगे।

   उस रात्रि को भोजन के समय रानी हरमियोंन ने अपने अतिथि से कहा- "आप कुछ दिन और रुक जाए तो कितना अच्छा रहेगा। क्या आपको यहां कोई बात की असुविधा हो रही है जो आप तुरंत जाना चाहते हैं।"

 सुन्दरी हरमियोंन  के आग्रह को सुनकर राजा पोलिजिन  बोले- आप के आतिथ्य में कमी का तो कोई प्रश्न ही कहां है? आप जैसी सुंदर जब कह रही है तो मुझे अपने प्रस्थान पर विचार करना पड़ेगा, मैं 3 दिन और रुक जाऊंगा।

  प्रसन्न मुद्रा में रानी हरमियोंन ने अपने पति राजा लिओन्टेस  की ओर देखा जो विचित्र दृष्टि से उसकी ओर देख रहे थे। रानी हरमियोंन को यदि राजा  के मन में जो बात उठी थी उसका ज्ञान हो जाता तो वह शायद इतनी प्रसन्न  नहीं होती। राजा पोलीजीन द्धारा  अपनी प्रार्थना स्वीकार कर लेने में उसने  गर्व  पूर्ण दृष्टि से खुश होकर अपने पति की ओर देखा था।

राजा लियोन्टेस सर्वगुण संपन्न था, मगर उसमें एक बहुत भारी कमी यह थी कि वह शक्की  स्वभाव का था। रानी के आग्रह करने पर राजा पोलीजीन  का अपना प्रवास अधिक दिन तक बढ़ाने की स्वीकृति पर उसके मन में संदेह उत्पन्न हो गया। अपने पराजय के दु:ख के साथ उसके मन में संदेह का बीज पनप गया। उसे लगा कि उसका मित्र उसकी पत्नी की ओर आकर्षित है इसलिए उसके कहने पर उसने फौरन रुकने की बात मान ली।

  राजा पोलीजीन का आगे दिन रुकना उसके  मित्र के लिए कोई सुखद बात नहीं रही। राजा लियोन्टेस हर बात में अपनी पत्नी के प्रति शक करने लगा। उसे अपनी पत्नी का राजा पोलीजीन से बोलने में भी संदेह होने लगा कि उसकी पत्नी भी उसकी ओर आकर्षित है। दोनों राजा रानी के दांपत्य जीवन में जहर-सा घुलने ने लगा।

   तीन-दिन बाद राजा पोलीजीन  ने अपने मित्र से विदा लेते हुए कहा- "आप भी बोहेमिया आने का प्रोग्राम बनाइए। वहां रानी हरमियोन  जैसी सुंदरी तो आपका स्वागत नहीं कर सकेगी मगर अपने मित्र के मेहमान नवाजी से आपको निराश नहीं होना पड़ेगा।रानी जी को भी अवश्य लाइए।

 रानी हरमियोन ने भी अपने पति के मित्र को हंस कर विदा करते हुए कहा- 'हम भी अवश्य आएंगे। आप का साथ सुखद रहा है।"

 राजा पोलीजीन  के जाने के बाद राजा लिओन्टेस के कानों में बार-बार ये शब्द  गूंजने लगे "आपका साथ सुखद रहा।"

संदेह मनुष्य के मस्तिष्क को खराब कर देता है। उसे रानी  हरमियोंन के प्रति इतना संदेह हो गया कि वह मन-ही-मन उससे घृणा करने लगा। कुछ दिन बाद राजा लिओन्टेस को रानी हरमियोंन ने  शुभ समाचार दिया कि वह गर्भवती है।राजा लिओन्टेस प्रसन्न होने के बजाय मन-ही-मन संदेह की आग में जल उठा। उसने मन में विचार किया कि आने वाली संतान वास्तव में राजा पोलीजीन की होगी।

  धीरे-धीरे राजा लियोन्टेस का मन इतना खट्टा हो गया कि वह रानी से पीछा छुड़ाने की बात सोचने लगा। राजा लियोन्टेस का पुत्र मैमीलियस था जिससे वह बहुत प्रेम करता था। रानी हरमियोंन भी अपने पुत्र से बहुत स्नेह करती थी। परंतु उसके जीवन में लियोन्टेस के मित्र पॉलीजीन  के कारण राजा का मन  दुश्चिंता से भर गया।

  राजा लियोन्टेस  ने  अपने विश्वासी मंत्री कैमिलो को पुकार कर कहा ! "क्या यह बात तुमने देखी कि हमारे कहने से राजा पोलीजीन नहीं रुके। उनको अपने राज्य बोहेमिया की चिंता और अपने राजकुमार पलोरिजेज की याद आती रही परंतु रानी  के एक बार कहने पर ही वे सभी बातें भूल गए और 3 दिन के लिए अपना प्रस्थान रोक दिया।"

कैमिलो  ने कहा- "ऐसा तो हुआ था मालिक ! मगर इसका क्या अर्थ निकलता है, यह मेरे मेरी समझ में नहीं आया।

  इसका साफ अर्थ है कि पॉलीजीन का झुकाव हमारी अपेक्षा हमारी पत्नी की और अधिक था। हमें लगता है कि हरमियोंन ने पॉलीजीन को अधिक आकर्षित कर रखा है और हरमियोंन भी उसकी और हद से अधिक आकर्षित है।" राजा लोटस ने कहा।

 राजा के संदेह को जानकर मंत्री कैमिलो को मन- ही- मन अपने राजा की मूर्खता पर दया आई और वह प्रत्यक्ष में बोला,  "मगर रानी हरमियोन  आपके लिए पूर्ण समर्पित है।"

  "नहीं  मैं और धोखे में नहीं रह सकता। मुझे रानी  पर अब अधिक विश्वास नहीं रहा, राजा लिओन्टेस ने कहा-" तुम दगाबाज हरमियोन को सजा देने के लिए उसे विष दे दो।

   राजा की बात सुनकर कैमिलो कांप उठा, वह घुटनों के बल बैठ कर बोला- "नहीं मालिक! ऐसा कठिन आदेश ना दे! रानी गर्भवती है। इस प्रकार दो हत्याओं का बोझ मेरी आत्मा नहीं उठा सकेगी।"

  अपने मंत्री की बात सुनकर राजा  विचार में पड़ गया। रानी को महल में इस प्रकार मार डालने से छोटे राजकुमार मैमोलियस  को बहुत दुख होगा, साथ ही यूं भी अपनी अत्यंत प्रिय रही पत्नी  की ऐसी मत्यु से उनको सदैव दु:ख पहुँचेगा , यह सोचकर उन्होंने कमलों से पूछा , "फिर किस प्रकार रानी  से छुटकारा पाया जाए।

  कैमिलो ने कहा, "क्या यह संभव नहीं कि रानी जी को अपने देश से निर्वासित कर के अन्य जगह भेज दे जहां से उनका कोई समाचार आप तक नहीं आवे और उनको स्वयं ही भगवान अपने किए का दंड दे देगा।"

  अपने आने वाले क्रूर भविष्य से अनजान रानी हरमियोंन अपने महल में अपने राजकुमार  के साथ अपना मन बहला रही थी। सहसा राजा लियोन्टेस  ने  महल में प्रवेश किया। अपने पति को क्रोधित मुद्रा में देखकर रानी हरमियोंन खड़ी हो गई तथा बोली- "आज आप कुछ उदास दिखाई देते हैं? क्या बात है?

 राजा ने बज्रपात करते हुए कहा, "हमें तुम्हारे दु:चरित्र के विषय में निश्चय हो चुका है। तुम्हारी कुटिलता के लिए हम तुम को निर्वासित करने का दंड देते हैं।"

 रानी का मुख एकदम सफेद पड़ गया और वह मूर्छित होकर गिर पड़ी। परिचारिकाओ ने उस पर पानी छिड़कते हुए उसे होश  दिलाया।

  राजा लियोन्टेस ने रानी  की अनेक विनय करने पर भी एक ना सुनी और उसे एक छोटे जहाज पर सवार करके सिसली से निर्वासित कर दिया। कैमिलो भारी हृदय से उसे किसी निर्जन स्थान पर छोड़ने के लिए साथ रवाना हुआ। छोटा राजकुमार को राजा  ने अपने पास रख लिया।

   सिसली से रवाना होने के कुछ दिन बाद जहाज भयंकर तूफान में फस गया। तेज हवाओं ने उसे मार्ग से भटका दिया। अंत में एक चट्टान से टकराकर जहाज क्षतिग्रस्त हो गया। जहाज का एक टूटे हुए तख्ते के सहारे हरमियोन समुद्र में भयंकर लहरों में बहने लगी। भाग्य ने उसे लहरों के थपेड़ों से बोहेमिया के समुद्री रेतीले तट पर ला पटका। कैमिलो भी समुद्री झंझावात में एक नाव के सहारे बहुत दूर बोहेमिया के तट पर जा पहुंचा गया।

      सोलह  वर्ष बाद

  कैमिलो ने बोहेमिया के राजा पोलीजीन जी के समक्ष सिर झुका कर नम्रता पूर्वक कहा, "महाराज मुझे अपना देश छोड़े हुए 16 वर्ष हो गए। भाग्य ने मुझे आपके राज्य में सेवा करने का अवसर दिया। मेरा हृदय उस समय सिसली के महाराज के प्रति विद्रोह कर उठा था क्योंकि उन्होंने अत्यंत क्रूर कार्य किया था। अब उस बात का लंबा समय निकल चुका है, ह्रदय अपने देश में जाने को व्याकुल है। मैं चाहता हूं कि मेरी अन्त समय अपने ही मातृभूमि में हो।

  राजा पोलीजीन बोले, प्रिय कैमिलो हमने तुमको सदैव एक मित्र का सम्मान दिया है। तुम्हारे यहां रहने पर हम आभारी हैं। जब भी अपना देश जाना चाहो हम सम्मान पूर्वक तुम्हें विदा करेंगे। मगर इस समय हम अजीब दुविधा में पड़े हैं। तुम कुछ दिन और नहीं रुक रुक सकते।

 'अवश्य महाराज ! आपके छत्रछाया में इतना लंबा समय अत्यंत सुख पूर्वक बिताया है। आपने मुझे यथेष्ट सम्मान भी दिया। आपकी आज्ञा पाकर ही मैं यहां से जाऊंगा। कृपया बताइए आपकी क्या दुविधा है।'


   उदास होकर महाराज पोलीजीन बोले, बताओ मित्र कैमिलो" तुमने हमारे राजकुमार पलोरिजेल को कब देखा था? कैमिलो ने सोच कर बोला, "महाराज मैंने उनको 3 दिन पहले देखा था। इधर वे कुछ कम दिखाई देते हैं।

 "यही मेरी दुविधा है मित्र ! राजा होने पर भी मैं सुखी नहीं हूं। मुझे पता लगा है कि राजकुमार किसी चरवाहे की लड़की से प्रेम करता है और वह अक्सर वही चला जाता है।"


 कैमिलो ने कहा, "महाराज ! मैंने भी सुना है कि समुद्र तट के पास किसी चरवाहे की अत्यंत रूपवती और सुसंस्कृत एक लड़की है जिसकी कृति दूर-दूर तक फैली है फैली हुई है। यह भगवान की क्या है कि एक चरवाहे के यहां ऐसी कन्या उत्पन्न हुई है।"

 "हम चाहते हैं कि जाकर सही बात का पता लगाओ कैमिलो। कहीं हमारा पुत्र मार्ग से भटक कर किसी दुष्चक्र में ना फंस जाए।"

  आप जैसी आज्ञा दे वैसा करूं।

  राजा ने कहा"  हम स्वयं उस लड़की को देखना चाहते हैं जिसके रूप का जादू हमारे पुत्र पर चढ़ा हुआ है। हम और तुम वहां भेष बदलकर जाएंगे और देखेंगे।

  समुद्र किनारे चरवाहे के एक गांव में झोपड़ी में राजकुमार  अपने सपनों की रानी परिणीता से कह रहे थे "मेरा मन यहां से जाने का नहीं करता परंतु मुझे अपने माता-पिता के पास जाना है, अन्यथा उनको चिंता हो जाएगी। तुम्हारे पास मेरा समय इस प्रकार व्यतीत हो जाता है कि मुझे मालूम ही नहीं पड़ता।"

   परिणीता के माता ने कहा, "पलोरिजेल तुम को अवश्य ही चले जाना चाहिए। तुम्हारे माता-पिता निसंदेह चिंतित होंगे। अभी तक तुमने नहीं बताया कि तुम्हारे माता-पिता क्या करते हैं?"

  मैं शीघ्र ही अपने पिता को आपके बारे में बताऊंगा। अभी तक मैं अपने पिता से आपके बारे में कुछ नहीं कहा है। वही हमारे विवाह के लिए परिणीता  के नाना भोपास  से बात करेंगे।

  इसी समय झोपड़ी के बाहर बातचीत की आवाज आने लगी और चरवाहे भोपास के साथ लंबे चोंगे पहने हुए सफेद दाढ़ी वाले अंगद आगन्तुक ने झोपड़ी में कदम रखे।

  भोपास ने कहा, "प्रिय  देखो परिणीता पादरी चाचा तुमको यीशु का आशीर्वाद देने के लिए आए हैं।"

  दोनों पादरी परिणीता को देखकर बहुत प्रसन्न हुए उन्होंने उसे आशीर्वाद दिया। परिणीता के माता-पिता को भी आशीर्वाद दिया।

 भोपास बोला, "फादर यह स्त्री लगभग 16 साल पहले मुझे समुद्र के किनारे मुर्च्छित  अवस्था में मिली थी। यह मां बनने वाली थी। इसको मैंने पुत्री के समान पाला है। इसी की पुत्री परिणीता  है। मेरे भगवान यीशु से प्रार्थना है कि इस दुखियारी की पुत्री सदैव सुखी रहे।"

  पादरी बोले, "यीशु की कृपा से इस लड़की का भविष्य सुखमय रहे।"

 


   पादरियों के जाने के बाद राजकुमार भी शीघ्र आने का वादा कर वहां से चल दिए। पादरी वेश में राजा पोलीजीन  कन्या परिणीता को देखकर एकदम चमत्कृत हो गए। उसे इस बात का भी संतोष हुआ कि वह चरवाहे की पुत्री नहीं थी। राजा को विचार मग्न देखकर कैमिलो बोला, "महाराज मुझे तो ऐसा लगता है कि वह रानी हरमियोन के अतिरिक्त कोई नहीं है। समय व परिस्थिति के साथ ऐसा लगता है कि वह रानी हरमियोन है। उनकी मुखाकृति में ऐसा अंतर आ गया है कि वह पहचान में नहीं आती। संभव है कि जीवन में भयंकर कष्टों के कारण उसमें यह परिवर्तन हो गया हो।

  राजा ने विचार पूर्वक कहा, "तुम्हारी बात एक दम सही मालूम होती है। परंतु उसकी मां हरमियोन ने उसे राजकुमारियों के समान ही पाल- पोस कर बड़ा किया है। उस लड़की की मुखाकृति में हरमियोन की झलक है। मुझे अपने पुत्र  की पसंद पर गर्व है।"

 महाराज परिणीता चरवाहों में रही अवश्य है। परंतु उसकी मां हरमियोन  उसको राजकुमारियों के समान ही पाल- पोस कर बड़ा किया है, ऐसा उसके राजोचित व्यवहार से लगता है।

  "मगर  मेरे हृदय में लियोन्टेस की दुष्टता याद करके दुख होता है। उसकी घृणित कार्यवाही के कारण मुझे अपना निकट संबंध बनाने में हिचक हो रही है।"

 महाराज ! निसंदेह राजा लियोन्टेस ने उस समय महान भूल की थी। परंतु उसके दुष्कर्म की सजा आप अपने पुत्र व अबोध कन्या को तो नहीं दे सकते।"

   "तुम ठीक कहते हो कैमिलो, इसमें बेचारी परिणीता या रानी हरमियोन का कोई दोष नहीं।"

 राजकुमार पलोरिजेल को अपने पिता की परिणीता से विवाह की स्वीकृति पाकर प्रसन्नता का ठिकाना ना रहा। शीघ्र ही राजकीय धूम-धाम के साथ दोनों का विवाह संपन्न हो गया।

   कुछ दिन बाद कैमिलो ने फिर राजा पोलीजीन से सिसली जाने की आज्ञा मांगी। राजा ने बहुत धन-धान्य देकर अपने एक भव्य जहाज पर कैमिलो को स्वदेश भेज दिया। सिसली पहुंचकर एक दिन कैमिलो राजा लियोन्टेस के दरबार में गया। कैमिलो को यह देखकर अत्यंत दुख हुआ कि राजा लियोन्टेस साक्षात दु:ख की मूर्ति बने हुए हैं। रानी हरमियोन को निर्वाचित करके उसका जीवन दुख में हो गया है। शीघ्र ही उसको अपनी भूल समझ में आ गई थी। पश्चाताप के कारण उसका स्वास्थ्य एकदम गिर गया था। शरीर में अनेक रोग लग गए थे। उन्होंने रानी     हरमियोन की बहुत खोज करवाई मगर सब व्यर्थ गया। नाविकों ने आकर जहाज के नष्ट होने पर समाचार दिया था। उन्होंने उसे मृत समझ लिया था। उसके बाद वे अपने आप को कभी क्षमा नहीं कर पाए थे।

  अब 16 साल बाद कैमिलो को देखकर वे टूटे ह्रदय से बोले "प्रिय कैमिलो मैं एक अपराधी हूं। तुम  अपनी आप बीती सुनाओ कि उस तूफान में तुम कैसे बच गए।"

  कैमिलो ने अपनी सारी कहानी सुनाई तथा उसे यह सुनकर की रानी हरमियोन बोहेमिया में चरवाहे की बेटी बनकर रही उसकी पुत्री अब बोहेमिया के राजकुमार की पत्नी थी। उसका हृदय गदगद हो गया। भगवान ने उसके पाप की सजा उसकी पुत्री को नहीं दी थी।

   फौरन लिओन्टेस ने कैमिलो व अन्य दरबारियों को लेकर जहाज से बोहेमिया के लिए प्रस्थान किया। महारानी हरमियोन ने अपने पति को क्षमा कर दिया और राजा लियोन्टेस 16 वर्ष बाद अपने अभिन्न मित्र पोलीजीन के मेहमान बने। राजकुमार पलोरीजेल को जामाता के रूप में पाकर उन्होंने अपने को धन्य समझा।

 

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Hindi story-भाग्य का खेल (शंका,संदेह)

  भाग्य का खेल       बहुत वर्षों पहले इसकी सिसली में राजा लिओन्टेस राज्य करता था। इटली के पास सिसली एक बड़ा टापू है। राजा लिओन्टेस के राज्य ...