Monday 24 August 2020

अपना काम आप करने में लाज कैसी?

 अपना काम आप करने में लाज कैसी?

  एक बार एक ट्रेन बंगाल में एक देहाती स्टेशन पर रुकी गाड़ी रुकते ही एक सजे-धजे युवक ने 'कुली ! कुली ! पुकारना प्रारंभ किया युवक ने बढ़िया पतलून पहन रखा था, पतलून के रंग का ही उसका कोट था, सिर पर हैट था, गले में टाई बंधी थी और उसका बूट चम-चम चमक रहा था

  देहात के स्टेशन पर कुली तो होते नहीं बेचारा युवक बार-बार पुकारता था और इधर-उधर हैरान होकर देखता था उसी समय वहां सादे स्वच्छ कपड़े पहने एक सज्जन आए उन्होंने युवक का सामान उतार लिया युवक ने उनको कुली समझावह डाटँते हुए बोला- 'तुम लोग बड़े सुस्त हो मैं कब से पुकार रहा हूं

  उन सज्जन ने कोई उत्तर नहीं दिया युवक के पास हाथ में ले चलने का एक छोटा बॉक्स (हैंडबैग) था और एक छोटा- सा बंडल था उसे लेकर युवक के पीछे-पीछे वे उसके घर तक गए घर पहुंचकर युवक ने उन्हें देने के लिए पैसे निकालेलेकिन पैसे लेने के बदले वे सज्जन पीछे लौटते हुए बोले- 'धन्यवाद !'

  युवक को बड़ा आश्चर्य हुआ यह कैसा कुली है कि बोझ ढोकर भी पैसे नहीं लेता और उल्टा धन्यवाद देता है उसी समय वहां उस युवक का बड़ा भाई आ गया उसने जो उन सज्जन की ओर देखा तो ठक-से रह गया उसके मुख से केवल इतना निकला- 'आप !'

  जब उस युवक को पता लगा कि जिसे उसने कुली समझ कर डाटा था और जो उसका सामान उठा लाए थेवह दूसरे कोई नहीं, वे तो बंगाल के प्रसिद्ध महापुरुष पंडित ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी हैं, तो वह उनके चरणों पर गिर पड़ा और क्षमा मांगने लगा

ईश्वर चंद्र जी ने उसे उठाया और कहा- 'इसमें क्षमा मांगने की कोई बात नहीं है हम सब भारतवासी हैं हमारा देश अभी गरीब है हमें अपने हाथ से अपना काम करने में लज्जा क्यों करनी चाहिए अपने हाथ से अपना काम कर लेना तो संपन्न देशों में भी गौरव की बात मानी जाती है

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