Wednesday 19 August 2020

भामाशाह का त्याग

 भामाशाह का त्याग
 
चित्तौड़ पर अकबर की सेना ने अधिकार कर लिया था महाराणा प्रताप अरावली पर्वत के वनों में अपने परिवार तथा राजपूत सैनिकों के साथ जहां-तहां भटकते-फिरते थे महाराणा तथा उनके छोटे बच्चों को कभी-कभी दो-दो, तीन-तीन दिनों तक घास के बीजों की बनी रोटी तक नहीं मिलती थी चित्तौड़ के महाराणा और सोने के पलंग पर सोने वाले उनके बच्चे भूखे-प्यासे पर्वत की गुफाओं में घास-पत्ते खाते और पत्थर की चट्टान पर सोते थे लेकिन महाराणा प्रताप को इन सब कष्टों की चिंता नहीं थी उन्हें एक ही धुन था कि शत्रु से देश का-चित्तौड़ की पवित्र भूमि का उद्धार कैसे किया जाए
                                                                                                  किसी के पास काम करने का साधन ना हो तो उसका अकेला उत्साह क्या काम आवे महाराणा प्रताप और दूसरे सैनिक भी कुछ दिन भूखे-प्यासे रह सकते थे; किन्तु भूखे रहकर युद्ध कैसे चलाया जा सकता है घोड़ों के लिए, हथियारों के लिए, सेना को भोजन देने के लिए तो धन चाहिए महाराणा के पास फूटी कौड़ी नहीं थी उनके राजपूत और भील सैनिक अपने देश के लिए मर-मिटने को तैयार थे उन देशभक्तों वीरों को वेतन नहीं लेना था; किन्तु बिना धन के घोड़े कहां से आयेगे,  हथियार कैसे बनायेगे, मनुष्य और घोड़ो को भोजन कैसे दिया जाय इतना भी प्रबंध ना हो तो दिल्ली के बादशाह की सेना से युद्ध कैसे चले महाराणा प्रताप को बड़ी निराशा हो रही थी अंत में एक दिन महाराणा ने अपने सरदारों से विदा ली, भीलों को समझाकर लौटा दिया प्राणों से प्यारी जन्म-भूमि को छोड़कर महाराणा राजस्थान से कहीं बाहर जाने को तैयार हुए

 
जब महाराणा अपने सरदारों को रोता छोड़कर महारानी और बच्चों के साथ वन के मार्ग से जा रहे थे, महाराणा के मंत्री भामाशाह घोड़ा दौड़ते आए और घोड़े से कूदकर महाराणा के पैरों पर गिरकर फूट-फूट कर रोने लगे-' आप हम लोगो को अनाथ करके कहां जा रहे हैं?

  महाराणा प्रताप ने भामाशाह को उठाकर हृदय से लगाया और आंसू बहाते हुए कहा- 'आज भाग्य हमारे साथ नहीं है अब यहां रहने से क्या लाभ? मैं इसलिए जन्मभूमि छोड़कर जा रहा हूं कि कहीं कुछ धन मिल जाए तो उससे सेना एकत्र करके फिर चित्तौड़ का उद्धार करने लौटू आप लोग तब तक धैर्य धारण करें।'
  भामाशाह ने हाथ जोड़कर कहा-' महाराणा आप मेरी एक बात ना मान लें।'
  महाराणा प्रताप बड़े स्नेह से बोले-' मंत्री ! मैंने आपकी बात कभी टाली है क्या?'
 भामाशाह के पीछे उनके बहुत-से सेवक घोड़ों पर अशर्फियो के थैले लादे ले आय थे भामाशाह ने महाराणा के आगे उन अशर्फियों का बड़ा भारी ढेर लगा दिया और फिर हाथ जोड़कर बड़ी विनम्रता से कहा- ' महाराणा ! यह सब धन आपका ही है मैंने और मेरे बाप-दादों ने चित्तौड़ के राजदरबार की कृपा से ही इसे इकट्ठा किया है आप कृपा करके इसे स्वीकार कर लीजिए और इससे देश का उद्धार कीजिए
  महाराणा प्रताप ने भामाशाह को हृदय से लगा लिया उनकी आंखों से आंसू की बूंदे टप टप गिरने लगी वह बोले लोग- प्रताप को देश का उद्धारक कहते हैं, किंतु इस पवित्र भूमि का उद्धार तो तुम्हारे- जैसे उदार पुरुषों से होगा तुम धन्य हो भामाशाह?'
 उस धन से महाराणा प्रताप ने सेना इकट्ठा की और मुगल सेना पर आक्रमण किया मुगलों के अधिकार की बहुत- सी भूमि महाराणा ने जीत ली और उदयपुर में अपनी राजधानी बना ली
 महाराणा प्रताप की वीरता जैसे राजपूताना के इतिहास में विख्यात है, वैसे ही भामाशाह का त्याग भी विख्यात विख्यात है ऐसे त्यागी पुरुष ही देश के गौरव होते हैं

No comments:

Post a Comment

Hindi story-भाग्य का खेल (शंका,संदेह)

  भाग्य का खेल       बहुत वर्षों पहले इसकी सिसली में राजा लिओन्टेस राज्य करता था। इटली के पास सिसली एक बड़ा टापू है। राजा लिओन्टेस के राज्य ...