बड़ा कौन
एक बार उड़द की दाल और बड़ों में झगड़ा हुआ। दाल कहती थी कि मैं बड़ी और बड़े कहते थे कि हम बड़े। यह विवाद हो ही रहा था कि इतने में बड़ों ने दाल से प्रश्न किया कि तुम कैसे बड़ी हो और तुम्हारे पास बड़े होने का क्या प्रमाण है? यह सुन दाल बोली कि मेरे पास तुम्हारे लिए सिर्फ यह सबूत है कि तुम मुझसे पैदा हुए हो और मैं ना होती,तो तुम कहां से आते, तब बड़ों ने कहा कि यह ठीक है। पर तुम भी यह बताओ कि यदि ऐसा है तो तुम्हारा नाम लोगों ने दाल क्यों रखा? बड़ा क्यों ना रखा और तुम को बड़ा क्यों नहीं कहा। हम तुमसे ही हे उड़द, बड़े बोले। पर सुनो-" यह बात यह नहीं, बल्कि बात यह है कि तुमने तो सिर्फ एक दुख सहा, यानी दलि गई इसलिए दाल हुई और हमारी कथा सुनो की प्रथम लोगों ने हमको दाल की अवस्था से लेकर पानी में गलाया। हमारी खाल खींची पर इस पर भी उनको तृप्ति नहीं हुई। तब उसी उस धुली दाल को लेकर सिलबट्टे पर खूब ही पिसा, परंतु इस पर भी उनका दिल ना भरा। तब उसमें नमक भरा, इतने पर भी हमारा पीछा ना छोड़ा।मार-मार थप्पड़ो से पोया। इस पर भी उन्हें सब्र ना हुआ। पुनः चूल्हे पर कड़ाही रख तेल को खूब गर्म किया और उस गरम कड़ाही में मुझे छोड़ दिया। इतनी तकलीफ सहने के बाद मैं बड़ा बना हूं और तुम लोगों ने मुझे बड़ा कहा।
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