Thursday 6 August 2020

पंचतंत्र की कहानियाँ- शेखचिल्ली ब्राह्मण

 शेखचिल्ली ब्राह्मण

बहुत समय पहले एक ब्राह्मण रहता था वह भीख मांग कर गुजर-बसर करता था कभी-कभी तो उसके उसे कई दिन भूखा रहना पड़ता कभी मुश्किल से एक समय का खाना जुटा पाता मगर एक दिन उसकी किस्मत चमकी कहीं से उसे एक हंडी भर आटा मिल गया इतना आटा पाकर ब्राह्मण खुशी से फूला नहीं समाया वह हंडी लेकर घर पहुंचा और उसे अपने बिस्तर के पास लटकाकर आराम से लेट गया

लेटे-लेटे उसने सोचा,काश मैं धनवान होता तो मुझे भीख मांगने के लिए दर-दर न भटकना पड़ता। यूं ही सोचते सोचते वह अपनी कल्पना के घोड़े दौड़ाने लगा 'हंडी में ढेर सारा आटा भरा है!' वह सोचता रहा,'इतना आटा की कई दिन बैठे-बैठे ही खाऊ तो भी खत्म ना हो मगर मैं इसे घर पर क्यों रखूं? बेच क्यों ना दूं? अगर देश में अकाल पड़ा होता तो इसे अच्छे खासे दामों में बेचा जा सकता था मैं बाजार जा कर आवाज लगाऊंगा,"आटा ले लो, आटा।"

'फिर मेरा आटा खरीदने के लिए बहुत सारे लोग जमा हो जाएंगे।"लाओ,हम तुम्हारा आटा दस रूपये में खरीदेंगे,"एक आदमी कहेगा दूसरे आदमी कहेगा," मैं पन्द्रह रुपये दूंगा

"अरे 15 रूपये क्या चीज है? तीसरा आदमी कहेगा," मैं 20 रूपये दूंगा। बस! फिर मैं 20 रूपये में सारा आटा बेच दूंगा

तब मेरे पास 20 रूपये हो जाएंगे। इन 20 रूपये से एक जोड़ी जूता और एक धोती खरीद लूंगा। नहीं, नहीं, यह सब कुछ नहीं खरीदूंगा। मैं 20 रूपये से एक जोड़ी बकरियां खरीदूंगा। उन्हें हरी-हरी घास और पत्ते खिलाऊंगा। फिर मेरी बकरियों के बच्चे होंगे और कुछ ही समय में मेरे पास कम से कम 10 बकरियां हो जाएंगी। तब मैं उन बकरियों को बाजार ले जाऊंगा।

"बकरियां ले लो,बकरियां," मैं जोर-जोर से आवाज लगाऊंगा,मोटी- ताजी बकरियां"

बकरिया देखकर कोई देहाती दौड़ आएगा और कहेगा,"ऐसी ही बकरियां तो मैं ढूंढ रहा था वह फौरन 100 रुपये देकर मेरी बकरिया खरीद लेगाहां-हां पूरे 100 रूपये में!

मैं उन 100रुपयों से एक लाल रेशमी कोट खरीदू या फिर एक खूबसूरत पलंग? नहीं मैं रुपए ऐसे बर्बाद नहीं करूंगा मैं दो गाये खरीदुंगा गाय के बछिया होगीवे बड़ी होकर गाय बन जाएंगी उन गायों के फिर बछिया होंगे और वह भी बड़ी होकर गाय बन जाएंगी। उनसे खूब दूध मिलेगा। मैं दूध,दही और घी का व्यापार करूंगा। बर्फी,रसगुल्ला और गुलाब जामुन बना लूंगा।मेरी दुकान में मिठाइयां भरी रहेंगी।

"मिठाई, बढ़िया मिठाई," मैं जोर-जोर से आवाज लगाउंगा," ले लो, ले लो ताजी मिठाई, रसीली मिठाई, मिठाई, मिठाई, मिठाई

'फिर चारों ओर से बच्चे दौड़े आएंगे उनके हाथों में चांदी के सिक्के होंगे मेरी मिठाइयां देखकर उनके लार टपकने लगेगी और युवा,बूढ़े सभी मेरे दुकान में आने लगेंगे खरीदारों की भीड़ लग जाएगी

'मेरा व्यापार चल निकलेगा मैं दिन-ब-दिन अमीर होता जाऊंगाइतने रुपयों का मैं क्या करूंगा? क्या मैं एक हाथी खरीदू या फिर एक मंदिर बनवा दूं? यह सब कुछ नहीं मैं हीरे, मोती और जाहिरात का व्यापार करूंगा

'फिर मैं एक सुंदर नीला कोट  और बढ़िया पगड़ी पहनकर राजा के पास जाऊंगा दरबार में जाकर कहूंगा, "महाराज, आपके लिए अनोखे हीरे-पन्ने और मोती लाया हूं एक से एक बढ़िया है।"

'वाह!' राजा साहब कहेंगे," ऐसे मोती तो मैं अपनी रानी के लिए खरीदना चाहता था 

'फिर तो हीरे,मोती,पन्ने का व्यापार बढ़ता जाएगा और मैं दुनिया का सबसे धनी आदमी बन जाऊंगा

'तब मैं एक खूब बड़ी हवेली बनाऊंगा उसके चारों और बाग-बगीचे होंगे आम के पेड़ और सुंदर गुलाबों की क्यारियां होंगी एक स्वच्छ तालाब होगा जिसमें लाल-नीले और पीले कमल खिले होंगे पानी में दूध जैसे सफेद हंस तैरा करेंगे

'फिर एक से एक धनी लोग मेरे घर आएंगे कहेंगे," हमारी बेटी से शादी कर लो।" मैं कहूंगा," नहीं।" तब स्वयं राजा अपनी बेटी का रिश्ता लेकर आएगा फिर सुंदर-सलोने कजरारी आंखों वाली राजकुमारी से मेरी शादी हो जाएगी

'कुछ दिनों बाद हमारा एक लड़का होगा फिर दूसरा लड़का और एक लड़की होगी मैं बाग में अपने बच्चे को खिलाऊंगा जब मैं थक जाऊंगा तो अपनी पत्नी से कहूंगा," अब तुम बच्चों के साथ खेलोमगर मेरी पत्नी अपने कामों में फंसी होगी और बच्चे मेरे ही पीछे चले आएंगेपरंतु आराम करते समय मुझे यह पसंद नहीं होगा। मैं डांटकर उन्हें भगाऊंगा लेकिन बच्चे तो बच्चे ही ठहरे शैतानी पर मुझे गुस्सा आ जाएगा मैं एक छड़ी लेकर उन्हें पीटूंगा और पीटता ही रहूंगा

यह कल्पना करते हुए कि वह अपने बच्चे को पीट रहा है, ब्राह्मण ने हवा में अपना हाथ चलाना शुरु कर दिया हाथ लटकी हुई आटे की हंडी में जा लगा धम्म! मिट्टी की हांडी जमीन पर गिरकर टुकड़े-टुकड़े हो गई सारा आटा फर्श पर फैल गया

इस आवाज से उसकी पिनक टूटी वह हड़बड़ा कर उठ बैठा

उसने चारों ओर घूम कर देखा ना तो उसे कोई राजकुमारी दिखी, ना हवेली, ना बाग बगीचा और ना ही बच्चे बस,चारों ओर टूटी हड्डी के टुकड़े पड़े थे और सारा आटा फर्श पर बिखरा पड़ा था


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